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           Chandrayaan 3-Updated News.अपडेट समाचार चंद्रयान 3 के बारे में !

लो फ्रेंड्स मैं सिद्धार्थऔर 14 जुलाई 2023 इस डेट को मार कर लो, क्योंकि इसी दिन दोपहर के 02:35 पी एम को इसरो अपने सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान थ्री मिशन को लॉन्च करने वाला है और इस बार इंट्रेस्टिंग ली उनका मेन गोल ही सॉफ़्ट लैन्डिंग करना होने वाला है जो चंद्रयान टू के वक्त उन्होंने कोशिश किया था मगर मिशन अनफारचुनेटली फेल हो गया था। सिम्पली स्पीकिंग इस करंट मिशन पर वो ऐसे कंट्रोल तरीके से चाँद पर लैंड करने की कोशिश करेगा जिससे उसके लैंडर को कोई डैमेज ना हो। और अगर इसरो इस मिशन को सक्सेस्स्फुल्लीकर पाता है और चंद्रयान थ्री लैंडर के जरिए चाँद के साउथ पोल की जांच जल्द से जल्द शुरू हो जाती है तो भारत को पहला देश बन सकता है जो उस डेटा से पृथ्वी के जन्म की रियल स्टोरी प्रैक्टिकली प्रूफ करके दिखा पाएगा। सो अब सवाल ये आता है की ये सब चंद्रयान थ्री आखिर कैसे करे? उसके पास ऐसे कौन से कौन से सेन्सर्स लगे हुए हैं और ये सेन्सर्स मिशन के कोर ऑब्जेक्टिव के अलावा और क्या क्या कर सकते हैं? वेल इन्हीं सभी सवालों के जवाब हम आज इस वीडियो में देने वाले हैं। फिलहाल के लिए बस इतना समझ लो कि चंद्रयान थ्री का ये मिशन सिर्फ इंट्रेस्टिंग ही नहींबल्कि ईक्वली चैलेंजिंग भी होने वाला है क्योंकि सबसे पहले तुम उन पर सॉफ्ट लैन्डिंग करना मार्स पर सॉफ्ट लैन्डिंग करने से भी ज्यादा मुश्किल है। येस? वही मार जिसपर मून के कंपैरिजन में 33 टाइम्स ज्यादा क्रिएटर्स। नाउ इट लेट मी एक्सप्लेन तो यहाँ पर देखो जैसे आप देख सकते हो पूरी दुनिया में 77 गवर्नमेंट स्पेस एजेंसी ज़ हैं। उनमें से सिर्फ 11 कंट्रीज़ नहीं सक्सेस्स्फुल्ली मून मिशन किये बट सिर्फ तीन ही कन्ट्रीज जैसे है अमेरिका, रशिया और चाइना जो अब तक लूनर सरफेस पर सॉफ्ट लैन्डिंग कर पाए, जबकि मार्स मार्स तो ज्यादा दूर है।


उन पर जिन पांच कंट्रीज़ ने स्पेस मिशन्स किए हैं, उनमें से दो कंट्रीज़ में सक्सेसफुल लीलैंड किया है। यानी की मार्स पर लैन्डिंग का सक्सेस रेट हो गया 40% और वहीं पर लूनर सरफेस पर 27%। अब ऐसा इसलिए क्योंकि देखो जहाँ पर ऐवरेज एक स्पेसक्राफ्ट तो मार्स पर पहुंचने के लिए सेवन मंथ्स लगते हैं, वहीं पर स्क्रैप महज 3 दिन में पहुँच जाता है। सो, अगर गलती से भी मून पर जाते वक्त स्पेसक्राफ्ट का पैथ किसी भी रीज़न से डिफ्लेक्ट होता है तो इतने कम समय में उसे मेनूवर करना यानी की कंट्रोल करना और उसके पद को करेक्ट करना ज्यादा डिफिकल्ट हो जाता है।टाइम कम है, डिस्टैन्स कम है, डिफिकल्टी ज़्यादा हो जाती है और इससे भी ज्यादा दिक्कत तब आती है जब स्पेस स्क्रैप को कैल्कुलेटेड टाइम फ्रेम में लैन्ड नहीं कराया जाता है। बेसिकली स्पेस क्राफ्ट की स्पीड के बेसिस पर स्पेस क्राफ्ट लैन्डिंग का टाइम एस्टीमेट किया जाता है। मतलब सपोज़ अगर स्पेस स्क्रैप की स्पीड 20,000 किलोमीटर्स पर आ रहा है तो उसे मून पर लैंड करने के लिए सिर्फ 15-30 मिनट का विंडो मिलता हैं। अदर्वाइज़ उस पे स्क्रैप का खेल खत्म यानी की स्पेस स्क्रैप का पाठ चेंज करो या ना करो वो क्रैश होने ही वाला है। ऊपर से सिर्फ यही पर सॉफ्ट लैन्डिंग की मुसीबत खत्म नहीं होती।क्योंकि अगर सपोज़ इस टाइम फ्री में टचडाउन स्टार्ट भी कर दिया बाकी चीजें हैं जो कि लैंडर्स में प्रॉब्लम क्रिएट करेगी। जैसे की उस लैंडिंग साइट का लोकल अत्मोस्फिअर देखो जैसे की हम सब जानते हैं कि मार्स पर ऐट्मस्फीर है जो कि फ्रिक्शन पैदा करके लैंडर की स्पीड स्लो कर देता है और इसीलिए मार्स पर लैन्डिंग के लिए थ्रस्टर के साथ साथ पैराशूट्स भी यूज़ किये जा सकते हैं। पर मूल पर ऐसा कोई ऐट्मस्फीर ना होने की वजह से पूरा का पूरा लोड पर आ जाता है और यही लैन्डिंग में प्रॉब्लम क्रिएट करते हैं। क्योंकि ये एक्स्ट्रा पॉवरफुल थ्रस्टर्स जैसे ही



सर सर ऑफिस पर लैंड करने की कोशिश करते हैं, उनसे मून की लू सौल का उड़कर डेलिकेट सेन्सर्स में एंटर होने का खतरा बढ़ जाता है जो के मिशन पर पानी फेर सकता है। अब इन दिक्कतों के ऊपर पिछले बार चंद्रयान टू को लैंड जहाँ पर कराना था वो एरिया थाम उनका साउथ पोल अब मून के साउथ पोल पर ना स्पेसिफिकल्ली पूरे मून के कम्पेरिज़न में ज्यादा क्रिएटर्स वैल्यूज़ और माउंटेन्स है। सो लैन्डिंग के लिए एक स्वीट्स फॉर टारगेट करना और फिर ऐक्यूरेट्लि उसी स्वीट स्पॉट पर लैंडर को अर्थ से कंट्रोल कर के लैंड कराना या अपने आप में ही है। काफ़ी डिफिकल्ट काइसके अलावा मून के साउथ पोल पर लैंड करते वक्त टेम्परेचर ड्रैस टिकली फ्लक्चूएट होता है। क्योंकि मून को अपने एक रोटेशन कंप्लीट करने के लिए लगभग 28 डेज़ लगते हैं, जिससे दो हफ्तों तक संघ को फेस किये हुए साइड का टेम्पेरचर 120 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है और वहीं पर दूसरे साइड का टेम्परेचर -230 डिग्री सेल्सियस तक रहता है और साउथ पोल वेल साउथ पोल इन दोनों रीजन्स का जंक्शन है। अब अगर गलती से भी लैंडर साउथ पोल पर अचानक से लैंड हुआ तो टेम्परेचर डिफरेन्स की वजह से एक थर्मल शॉक जेनरेट हो सकता है और अगर थर्मल शॉक जेनेरेट हुआलैंडर की हालत बिल्कुल इस ग्लास की तरह हो जाएगी। इसमें जैसे आप देख सकते हो गर्म पानी डालते ही ग्लास चटक गया बस वैसे ही लैंडर के पुर्जे भी आसानी से टूट जाएंगे। बट चलो अब इन सभी प्रॉब्लम्स को टैकल करते हुए लेट से इसरो लूनर साउथ पोल पर अपना लैंडर लैन्ड भी कराता है। फिर भी उसके साथ कम्युनिकेशन टूटने का खतरा तो रहता ही है। तो देखो आपको शायद पता नहीं होगा पर चाँद कि सदन पोल पर ऑलमोस्ट 2047 अंधेरा ही रहता है। जब दिन भी होता है तो सिर्फ होराइज़न पर ही सन दिखाई देता है जिसकी वजह से

ऑपरेटर्स और माउंटेन्स के पीछे छुपे कुछ एरियाज़ ने तो मून के फॉर्मेशन से लेकर अब तक सन देखा ही नहीं है। अब ऐसे में लैंडर के सोलर पैनल्स कैसे काम करेंगे। बस इन्हीं सब रीजन्स यानी की लैन्डिंग साइड डिटेक्ट करने के लिए एनफ समय ना मिलना, डस्ट से सेन्सस खराब होना, लूनर साउथ पोल के हार्स टेम्परेचर, सर ऑफिस की मार और कम्यूनिकेशन इशूज़। इनकी वजह से कई बार लूनर सॉफ्ट लैन्डिंग फेल हो जाते हैं। अब चंद्रयान थ्री में इन प्रॉब्लम्स को हैंडल करने के लिए ऐसी यूनीक स्ट्रैटिजी का इस्तेमाल किया है की अब की बार सॉफ्ट लैन्डिंग में प्रॉब्लम्स आने के चान्सेस ना के बराबर है।
उन्होंने सॉफ्ट लैन्डिंग की डिफिकल्टी को सॉल्व करने के लिए चंद्रयान थ्री के लैंडर के लिए लकीली एक ऐसा स्पॉट ढूंढ निकाला है जहाँ ना क्रिएटर्स और माउंटेन से भरा अनइवन सर ऑफिस है और ना ही ड्रैस टिकली। अनइवन टेम्परेचर स् औलसों जब 14 जुलाई को चंद्रयान थ्री लॉन्च होगा तब वो सबसे पहले पांच बार अर्थ के चक्कर काटते हुए अपना ऑर्बिटर इस करेगा। सो दैट वो एक ऑप्टीमल स्पीड तक पहुँच जाए। इससे होगा ये है की वो मून की तरफ किसी स्लिंगशॉट की तरह उड़ जाएगा जिससे चंद्रयान थ्री मिशन के इनिशियल फीस में ज्यादा फ्यूल यूज़ नहीं होगा।   

और यही फ्यूल लैन्डिंग के वक्त इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके बाद जब लैन्डिंग का समय आएगा तब भी सोने एक यूनीक प्लैन सोचा हुआ है। इस ट्रेडिशनल तरीके से डाइरेक्टली पर लैंड नहीं करवाएगा क्योंकि ऐसी साइड अरलियर इसे बहुत ज्यादा धूल उड़ा सकते हैं और उससे सेन्सस खराब हो सकते हैं। सो इनस्टेड चंद्रयान थ्री अपनी स्पीड को लैंडिंग से पहले ड्रेस टिकली घटाने और साथ ही लैन्डिंग साइट को एक बार फिर से प्रॉपर्ली इन्सपेक्ट करने के लिए मून के अराउंड ऑर्बिट रिड्यूसिंग चक्कर काटेगा। यानी
ऑल इन ऑल सिर्फ इन दो स्टेप्स यानी की ऑर्बिटल में नोवरज़ और पर्फेक्ट लैन्डिंग स्पोर्ट से चंद्रयान थ्री सॉफ्ट लैन्डिंग फेलियर्स के पहले तीन रीजनस को टैकल कर सकेगा। इसके बाद रही बात फोर्थ रीज़न की विच इस कम्युनिकेशन इशूज़ तो उसके लिए चंद्रयान थ्री चाँद की सतह पर जांच अपने रोवर से करने वाला है। अपने लैंडर से नहीं और इनस्टेड वो अपने लैंडर को धूप में खड़ा रखकर उस से रोबर और पृथ्वी के बीच सिग्नल्स रिले करवाने वाला है। इसे थोड़ा और आसानी से समझने के लिए आइये सबसे पहले चंद्रयान थ्री के आर्किटेक्चर को समझते हैं। देखो अगर हम चंद्रयान थ्री और उसके प्रियसिस्टर चंद्रयान टू के आर्किटेक्चर को कंपेर करे तो हम देख सकते हैं कि इसके डिजाइन में कोई मेजर डिफरेन्स नहीं है। इसमें भी दो मॉड्यूल्स है प्रपल्शन मॉड्यूल और लै।



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